Madhuri Sarode's first sale |
बचपन में जब टेलीविज़न पर किसी हिन्दू धार्मिक धारावाहिक का प्रसारण होता तो एक बड़े ही विशेष देव "महादेव" अर्थात शंकर भगवान् का और उनकी तीसरी आँख का चित्रण हो आता। हर किसी को यह पता था कि वह प्रलय की आँख है। वो खुली कि दुनिया का विनाश पक्का। मैं छोटा था, तो बड़ों का विश्वास कर लिया। उसका डर मेरे अंदर भी घर कर गया कि शंकर भगवान् से दुश्मनी बड़ी महँगी पड़ेगी, मेरी वजह से बिना बात के यह दुनिया मारी जाए यह ठीक नहीं।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। जैसे - जैसे मैं बड़ा हुआ, इस विषय पर अध्ययन किया, तब मैंने पाया कि यह तीसरी आँख सभी में सुप्त अवस्था में होती है, जिसे ध्यानयोग से जगाया जा सकता है, जो हमारी अन्तः प्रज्ञा (intution) को जगाती है। व्यक्तिगत तौर पर तो यह बड़ा रोचक और लाभकारी है। लेकिन मुझे लगता है की हमारे ज़माने की तीसरी आँख आज भी सुप्त अवस्था में है और जो दो आँखें जागृत भी है, वह उसपर ध्यान नहीं दे रही। Delicious pizza in process |
Shabnam from showing mehendi skill |
गुजरात - वड़ोदरा से रंग - बिरंगे परिधान ले आईं किन्नर उर्वशी ने कहा, “पहले तो मुझे ज़रा घबराहट थी कि क्या होगा, कौन लोग हैं, शायद किसी प्रकार की जागरूकता का कार्यक्रम होगा, लेकिन यहाँ सभी लोगों से मिलने के बाद साड़ी परेशानी दूर हो गई और साथ ही दोनों ही दिन मुझे लोगों का बहुत ही अच्छा रेस्पोंस (प्रतिसाद) मिला। “बहुत ख़ुशी हुई यहाँ काम कर के। दुःख इस बात का है कि सिर्फ दो दिन ही इस मेले का आयोजन किया गया।” , यह कहना था करीमा का जिन्होंने मेकअप का स्टाल लगा रखा था, लोगों के जोश का अंदाजा उनके स्टॉल के बाहर लगी लाइन को देखकर सहज ही लगाया जा सकता था।
मुंबई की किन्नर माधुरी सरोदे अपने हाथों से बनें गहनों के और आँखों में चमक लिए गर्मजोशी से ग्राहकों का अभिवादन कर रही थी। उनकी उपलब्धि उनके गहनों के आलावा उनके पति जय कुमार थे, जो कंधे से कन्धा मिलाकर उनके साथ खड़े थे। इंदौर से आए स्वप्निल के स्टॉल का मुख्य आकर्षण “ड्रीम केचर” (dream catcher) था, जिसे काफी लोगों ने पसंद किया। उन्हें इसकी उम्मीद बिलकुल नहीं थी कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे। पेशे से क्रिमिनोलॉजिस्ट स्नेहिल, जिन्हें सारे स्टॉल का विश्लेषण कर सबसे बेहतरीन ३ को इनाम देना था, उन्होंने कहा, “इन सभी में वार्तालाप की दक्षता, कमाल की कारीगरी, मेहनत व लगन कूट-कूटकर भरी है। अगर इन्हें मौक़ा दिया जाए तो ये सभी अपने व समाज के लिए बेहतर रोज़गार खड़ा सकते हैं।”
मुंबई की किन्नर माधुरी सरोदे अपने हाथों से बनें गहनों के और आँखों में चमक लिए गर्मजोशी से ग्राहकों का अभिवादन कर रही थी। उनकी उपलब्धि उनके गहनों के आलावा उनके पति जय कुमार थे, जो कंधे से कन्धा मिलाकर उनके साथ खड़े थे। इंदौर से आए स्वप्निल के स्टॉल का मुख्य आकर्षण “ड्रीम केचर” (dream catcher) था, जिसे काफी लोगों ने पसंद किया। उन्हें इसकी उम्मीद बिलकुल नहीं थी कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे। पेशे से क्रिमिनोलॉजिस्ट स्नेहिल, जिन्हें सारे स्टॉल का विश्लेषण कर सबसे बेहतरीन ३ को इनाम देना था, उन्होंने कहा, “इन सभी में वार्तालाप की दक्षता, कमाल की कारीगरी, मेहनत व लगन कूट-कूटकर भरी है। अगर इन्हें मौक़ा दिया जाए तो ये सभी अपने व समाज के लिए बेहतर रोज़गार खड़ा सकते हैं।”
ऐसे कई आदर्श उदाहरण इस मेले में मौजूद थे, जो अपने में ही चमक लिए दमक रहे थे। जिन्हें बस दरकार है एक हाथ की, एक साथ की, जो सिर्फ उनके साथ हो लें। हमें बस उनके अस्तित्व को स्वीकार करना है, जिसे उसी प्रकृति, उसी परम ने गढ़ा है, जिससे हम जन्में हैं। चाहे शिव के त्रिनेत्र की बात हो या हमारे समाज के इस तीसरे पंथ की, हमारा अन्धकार में रहना, उनके पास ना जाना, उन्हें ना समझना ही हमारी भूल है। इसमें उनका कोई कसूर नहीं। समाज एक दिन में नहीं बदलेगा, लेकिन कोई इमारत एक दिन में नहीं बनती, कोई वृक्ष एक दिन में फल नहीं देता। ध्यानयोग में तीसरी आँख भी तब खुलती है जब बाकी दो आँखें भीतर देखना शुरू करती है। हमें भी ज़रूरत है अपने मन में झाँक कर अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने की। इस ज़माने की तीसरी आँख जागने के लिए तत्पर है, सहयोग दें।
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