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जी भर के मुझे ग़म दे,
तू किसी से ना कम दे,
इतनी तसल्ली कर लूँ कि,
किस बात का तू मुझे नम दे ।
औरों की तरह ना बेपरवाह,
गैरों सा मुझसे बरता कर,
तू चाहे मुझे पूरे दिल से,
तो आज़ादी से इत्तेला कर,
प्यार ही तो बस एक दौलत,
इंसाँ को जिसे कमाना है,
माटी रह जाए माटी में,
बेवजह ये आना जाना है,
बस नाम ही रह जानी इज़्ज़त,
किस काम ये कागज़ आना है,
जीते जी खुश ना हुए तुम तो,
हमको भी सुकूँ कहाँ आना है,
भोला मन घुट घुट रह जाए,
ऐसा हम कैसे होने दें,
जी भर के मुझे ग़म दे,
तू किसी से ना कम दे,
अपने काले पन्नों की तह को,
यक़ीन की आँग में झोंक दे,
तो फिर मैं हूँ संग-अंग तेरे,
देखूँ तुझे कौन रोक दे ।
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