That Bird - ऐसा वो परिंदा - hindi poem - rahulrahi - Lafzghar

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Tuesday, May 23, 2017

That Bird - ऐसा वो परिंदा - hindi poem - rahulrahi

Aesa Wo Parinda - rahulrahi.com

जाने किस उम्मीद के, सहारे से वो ज़िंदा है,
हैं कटे कुछ पर मगर, नभ देखता परिंदा है,
जो हैं उसके साथी सब, कैद सारे पिंजरे में,
चेह पर मुस्कान है, पर मन से वो शर्मिंदा हैं,

जो जिए हैं शान से, आज़ाद से बहारों में,
जी गए हर पल अमर, वो समर चुनिंदा है,

चमकता सोना कहो, चाँदी या लोहा कहो,
चाहे जितना भी सजा लो, घर तुम्हारा फंदा है,

जो उड़े बादल के संग, रंग फैले हर एक ढंग,
लय में नाचे हर तरंग, लाखों में एक वो बंदा है,

आसमाँ को नापने, वो झाँकने दुनिया नई,
फड़फड़ाता पंख अपने, शायद लगता अंधा है,

गिर के नीली छतरी से, दम भरे एक डाल पर,
अधमरे उसके जिगर की, सबने की बस निंदा है,

किस्मतों के किस्सों का, घोला काढ़ा पी गया,
ना उम्मीदी तोड़ता फिर, ये ही उसका धंधा है।

ऐसा वो परिंदा है…

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