Saboot - सबूत - hindi poem - rahulrahi.com - Lafzghar

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Friday, April 14, 2017

Saboot - सबूत - hindi poem - rahulrahi.com

saboot - hindi poem - rahulrahi.com

अपनी ही अदालत में, सबूत कौन सा,
दे दो जाने दो, सज़ा जीते जी,
कब किसको क्या पड़ी,
जिया कौन था? मरा कौन था?
फिर आई उसके जो, ताकत हाथ में,
कल तक था जो शरीफ, कातिल नकाब में,
उसने जलाने की ठानी थी लेकिन,
थी उसकी गाँव में दीवानी लेकिन,
जब से है सबने मारा मिल के वो बचपन,
शजर सी है निगाह, सूखा है जीवन,
फिर खौलते निवाले, निगले है दिन दिन,
खंजर सा ये समय, चुभता है गिन गिन,
बुझा के सारी आस, कत्ल करके ख्वाब सब,
भभकता एक जूनून, सर पे सवार खून,
निकला वो आधी रात, उफनती बीती याद,
मुट्ठी में अगले की, एक आँग बदले की,
जिससे वो मारेगा, उस पूरे गाँव को,
हर एक ग़म ख़ुशी, हर धुप छाँव को,
फिर बोलेगा, दहाड़ेगा, चलाओ मुकदमा,
पहले बताओ मुझको,
फाँसी लगा क्यूँ बाबा, क्यूँ मर गई मेरी माँ,
जाओ बुलाओ बुज़दिल, उस दिन लगी जो महफ़िल,
खामोश गूँगे बहरे, मुर्दे खड़े थे सारे,
हर कोई सन्नाटे की, चादर में मर चुका,
मुझको नहीं पड़ी कुछ, लेकिन मुझे पता है,
मैंने है मारा उनको, मेरी ही ये खता,
लेकिन ये है फजीहत, इस झूठ के ज़माने,
गीता पे हाथ रखकर, बोले वो सच बयाने,
लाओगे किस जहाँ से, गवाह कौन सा,
कब किसको क्या पड़ी,
जिया कौन था, मरा कौन था?

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