Hands of Taj - ताज के हाथ - Hindi story - rahulrahi - Lafzghar

Breaking

BANNER 728X90

Friday, May 5, 2017

Hands of Taj - ताज के हाथ - Hindi story - rahulrahi

ताज के हाथ

Taj ke hath - Hindi story - rahulrahi.com

गरजती हुई आवाज़ में शाहजहाँ ने कहा – दौलत से तरबतर कर दिया जाए उनको और उनकी सात पुश्तों को जिन्होंने जन्नत के इस नूर को धरती पर उतारा” | दोनों के सामने जैसे बीता कलवो इतिहास के पन्ने फिर खुल गए हो उस्मान ने कहना जारी रखा, “लेकिन एक कीमत चुकानी होगी इस नायब अजूबे के बदले....” थोड़ी खामोशी छाई, “और...” , “और... उन सबके हाथ कटवा दिए जाएँकि वो दूसरा ताज ना बना सकें |”

वैसे तो उस्मान मियाँ ज़्यादा किसी से ताम झाम नहीं रखते थे और ना ही उनके कोई बड़े शौक ही थे। वो बेहत ही सीधे - सादे से थे और अपने काम से काम रखते थे, लेकिन जब वह ताजमहल की तरफ देखते तो ऐसा लगता जैसे कोई ज्ञानी ध्यान लगाए बैठा हो और परमज्ञान पाने की कोशिश कर रहा हो। अब ये तो भला वो ही जाने कि लोगों के जाने के बाद वो लवर्स बेंच पर बैठकर आखिर क्या सोचते थे और कभी-कभी झुंझला भी जाते।

एक शाम ठीक उसी तरीके से अशरफ, उस्मान मियाँ का पड़ोसी, फिर वहाँ आ टपका। एक जोर की थाप सुनाई दी और उस्मान मियाँ की चीख निकल आई। अपनी पीठ मसलते हुए उस्मान ने कहा, “साले तुम जहन्नुम की आँग में जलो तुम्हारी सात पुश्तें...” , “देखो उस्मान मियाँ हमने गुस्ताखी की है, तो हमें ज़लील करो यार, हमारे चुन्नू मुन्नू को कहाँ दोजख की आँग में घसीटते हो” , अशरफ ने बीच में ही टोकते हुए थोड़ा गुस्से और थोड़ी नर्मी से कहा | “तुम तो हो ही सूअर की खाल, तुमको कहाँ कुछ लगनेवाला है, तुम तो जहाँ जाओगे वहीं...उस्मान ने इतना कहा ही था कि अशरफ ने अपनी जेब से एक बोतल निकाली और उस्मान की बात को काटते हुए कहा, “अरे, जहन्नुम तो हमको तुम बाद में धकेल लेना, पहले जन्नत के मज़े तो ले लो” | शराब की बोतल देखकर उस्मान भौचक्का रहा गया | “यार अशरफ, तुम्हारे तो दो वक्त के फुल्कों के मारे हैं, ये तो विलायती लग रही है, ये कहाँ पा गए तुम” , उस्मान अन्दर ही अन्दर खुश तो हो रहा था कि आज कुछ असली माल चखने मिलेगा लेकिन शक भी था कि कहीं यह चोरी का तो नहीं या फर मिलावटी तो नहीं, वरना सस्ते की वजह से गरीबी में आँटा गीला न हो जाए | “लो ! कर ली तुमने छोटी बात, झाड़ू मारते हो ज़मीन पर थोड़ी अपने दिमाग पर भी मार लो | यहाँ खुदा तुम्हें रंगीन शर्बतों के झरने दे रहा है और तुम हो कि उस पर भी शक, कभी खुश भी तो हो लिया करो गरीब आदमी” |

अशरफ ने व्यंग करते हुए उस्मान की सादगी पर ताना कसा था | हाँलाकि दोनों पड़ोसी ही थे और कई झोपड़ों से बनी हुई एक बस्ती में रहते थे लेकिन फिर भी अशरफ अपने को वहाँ के लोगों से कुछ अलग ही रखता था | फिर भी हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और | उसे कोई तकलीफ हो जाती तो उधारी के लिए उस्मान ही उसका एक मात्र आसमान होता था, शायद इसीलिए वह इस विलायती नागिन को चखने किसी और के पास नहीं बल्कि उस्मान के पास ही आया था |

ठीक है, ठीक है, मान लिया कि आज किस्मत ने हमारी इस जगह - जगह से सिली, मैल खाई झोली में इस विलायती मैखाने को गिरा ही दिया है”, अपनी लुंगी को ऊपर उठाते हुए उस्मान ने कहा, “लेकिन आज तो कोई ईद भी नहीं, ना तुम्हारे चुन्नू का जन्मदिन और ना ही हमारे और हमारी बेगम के मिलन का दिन तो फिर इसे चखे तो चखे किस बिनाह पर |” अशरफ ने अपना माथा ज़ोर से ठोका, बोतल उठाई और ताजमहल की तरफ इशारा किया और बड़े रईसी अंदाज़ में कहा, “आज का जाम - ताज के नाम” | उस्मान बिदक कर बोला, “तुम कोई अप्सरा तो हो नहीं कि मदिरा बरसओगी और मैं अंजुली अपने होठो को लगा के पियूँगा, और घर पर तुम्हारी भाभी जान लठमार खून की होली खेल ले लेकिन पीने रत्ती भर ना दे, तो फिर ये महफ़िल जमे तो जमे कहाँ ?” उस्मान के इस बड़े सवाल का खात्मा करते हुए अशरफ ने २ स्टील के गिलास निकाले और चखने के लिए थोड़ा चना - सिंग भी ले आया था ऐसा लग रहा था कि मानो पूरी प्लानिंग के साथ आया हो | बड़ी ही अदाइगी से उसने कहा मियाँ, दिवाली मनानी हो और पटाखे ना लाऊँ, ऐसा भी कभी हो सकता है |” अब उस्मान ने भी एक सहमती वाली मुस्कान बिखेर दी थी, और वह भी ताजमहल की लवर्स बेंच पर बैठकर इस जामशाम में डूबने को तैयार था | उस पर दिल फेंक अशरफ ने कहा, “यार तुम हो एकदम फटीचर... खुल के हँसों...बोतल को दोनों गिलासों में खाली करने के बाद उसने एक ग्लास उस्मान को दे दिया, एक खुद उठाया | दोनों ने एक दुसरे ग्लास आपस में टकराए और कहा, “ चियर्स...

-:-:-:-:-:-:-:-:-:-
ताज तो सैलानियों के लिए बंद हो चुका था लेकिन उसके बड़े से पहरेदारी लोहे के गेट के बाहर एक ५५ वर्ष की उम्र का व्यक्ति चौकीदार से लड़ रहा था | “अभी तक तो यहीं था, अब कहाँ चला गया मेरा थैला, तुम वाचमेन हो है या पैजामा...उस सनकी व्यक्ति ने नेपाली वाचमेन से कहा | इसपर नेपाली भी भड़क गया, “ऐ बुड्ढा, डंडा मारेगा ना एक, तुम्हारा खाली खोपड़ी खुल जाएगा | हम ताजमहल का रखवाला है, तुम्हारे जैसा उजड़ा बस्ती का नहीं | भागो यहाँ से... बंद हो गया है इधर सब, अब कल आके उजाले में ढूँढना” | वह बुड्ढा भी ज़रा सकपका गया था | आखिर में यहाँ वहाँ पता नहीं क्या खोजते हुए वह उसी जगह फिर - फिर आ जा रहा था | “ज़रुर इस चाइनीज़ हक्का नूडल्स ने ही लिया होगा वो थैला, वैसे भी इन लोगों को उसकी ज़रूरत होती है”, मन ही मन वह बुड्ढा बड़बड़ाते हुए वहाँ से चला गया | अँधेरा काफी हो चुका था और सनकी बुड्ढे के जाने के बाद वह वाचमेन भी कुछ इत्मीनान से रेडिओ पर भारत व पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मेच के फायनल मुकाबले का मज़ा लेने लगा |
-:-:-:-:-:-:-:-:-:-
क्या मियाँ, तुम हो बड़े कंजूस, क्या छोटी छोटी पेग बना रेले हो, उतारो पूरी की पूरी गिलासा में” , अशरफ अब काफी नशे में धुत्त हो चुका था और आगरा वाली भाषा को छोड़ अपनी हैदराबादी ज़बान में लौट चुका था | मन तो उस्मान का भी था लेकिन अपनी बेगम के डर से वह इस विलायती शराब के पीछे बहकना नहीं चाहता था | उसने ज़रा सम्भलते हुए अशरफ से कहा, “नहीं भाई, आज बहुत हो चुकी, आज के लिए इतना ही” | इस पर अशरफ तपाक से बोल पड़ा, “क्यूँ... क्यूँ काफी... अरे... अभी तो आधी बोतल बाकी है, मियाँ |” वैसे तो अशरफ पूरी तरह नशे में धुत्त था लेकिन उसे इस बात का अंदाज़ा था कि बोतल में शराब का स्तर क्या है | उस्मान अपने इरादे में और पक्का हो पाता कि यहाँ से निकले, उसके पहले ही अशरफ ने उस बोतल को उस्मान के गिलास में उंडेल दिया | “बड़े भाई.... सुनो... चाँदनी रात... उस पर चाँद भी क्या चमक रेला है | अपुन फटीचर लोग को वो बत्तीवाला खाना, क्या बोलते हैं वो” , “केंडल लाईट...” , “हाँ वईच... वो तो अपने कू कभी मिलेंगा नहीं ना... तो अपन मून लाईट वाली शराब ही उड़ा लेवे...” , उस्मान ने सर हिलाकर दोनों की गरीबी पर हामी भर दी | “भाई, ये एकदम आखिरी वाला है, लाश्ट है... लाश्ट” , अशरफ के नशे में डूबे हुए इस प्रस्ताव को उस्मान मान गया | दोनों ही सुकून में उस चाँदनी रात को अपने मन पर फैलने दे रहे थे |

उस्मान अभी नशे के अघोष में पहुँचा नहीं था और एक टकटकी लगाए फिर से उस चाँदनी में नहाते ताज की तरफ वो देखने लगा | लवर्स बेंच के शांत ध्यानी वातावरण को तोड़ते हुए अशरफ ने अचानक ही उस्मान से पूछ लिया, “मियाँ..., क्या तुमको मुमताज़ नज़र आती है उधर, जो इतना गौर से देखते हो, इतना ध्यान तो भाभीजान पर नहीं दिए तुम कभी |” उस्मान ने मुँह बिचकाते हुए कहा, “नाज़मीन की अम्मा कोई ताजमहल भी तो नहीं” | फिर भी अशरफ इस बात पर रुका नहीं, वह उस्मान के पीछे ही पड़ गया कि क्यूँ उस्मान रोज़ ताजमहल को बड़े इत्मीनान से देखता है, आखिर माँझरा क्या है ? अशरफ के इस ज़बरदस्ती वाले रवैये को देखकर उस्मान ने कहना शुरू किया | उस्मान जानता था कि अशरफ पूरी तरह से नशे में डूबा हुआ है, सुबह शराब के नशे के साथ साथ सबकुछ दिमाग से उतर जाएगा, तो कहने में कुछ हर्जा नहीं है |

ध्यान से सुनना, अशरफ मियाँ” , उस्मान ने अशरफ का ध्यान अपनी तरफ लाने को कहा | अशरफ एक जिज्ञासू बच्चे की तरह कान लगाकर उस्मान के सामने, अपने दोनों हाथों को अपने गाल के नीचे लगाकर बैठ गया | कुछ देर की खामोशी उस्मान की आवाज़ से टूटी, “अशरफ, क्या तुम जानते हो कि मेरा पूरा नाम क्या है ?” अशरफ ने एक बचकाना हँसी के साथ अपना हाथ उस्मान की ओर करके कहा, “क्या मियाँ, तुम अपनी जिगरी जान, भाई उस्मान” , “नहीं...” , उस्मान ने एक गंभीर आवाज़ के साथ अशरफ को बीच में ही रोक दिया | अशरफ फिर एकदम गौर से उस्मान की बातें सुनने लगा | “हमारा नाम है, उस्मान लाहौरी, उर्फ़ ग्रेंड - ग्रेंड सन ऑफ़ उस्ताद अहमद लाहौरी” , उस्मान ने इस बात को बड़े ही अदब से अपना सिर ऊँचा करके कहा | अशरफ की खोपड़ी इस बात को पचा नहीं पा रही थी, उसने अपना सिर खुजाना शुरू कर दिया, और फुसफुसाते हुए कहा, “मियाँ, कौन उस्ताद, क्या बोल रहे तुम ?” अचानक ही उस्मान का स्वर ऊँचा हो गया और उसने ताजमहल की ओर ऊँगली करके कहा, “वो ताजमहल...उस्मान के अन्दर अचानक आए तूफ़ान से अशरफ बेंच पर से गिर पड़ा और अपने आप को संभालते हुए फिर एकाग्रचित्त होकर बैठ गया | उस्मान ने कहना जारी रखा, “वो ताजमहल, उसे जिन कलाकारों ने खड़ा किया, उनके मुखिया थे, उस्ताद अहमद लाहौरी, हमारे वालिदों के वालिदों, परदादा के परदादा” | अशरफ का मुँह खुला खुला का रह गया, “क्या बात कर रहे मियाँ तुम ? तुमको तो मैं अव्वल दर्ज़े का लफंगा समझता थाइस पर उस्मान ने अशरफ को घूर कर देखा, “लेकिन तुम तो एक नंबर के शाही निकले” | अशरफ ने उस्मान को इस बात पर तीन बार सलाम किया, उस्मान फिर से अपने शाही रूप में घुस गया | “और कुछ बताओ मियाँ, अपना भी इश्ट्री (इतिहास) का नोलेज बढ़े” , अशरफ के इस निवेदन पर उस्मान ने हामी भरी और आगे कहना जारी रखा | “लोग कहते हैं कि ताज के बनने के बाद, शाहजहाँ ने उन मजदूरों के हाथ कटवा दिए थे” , “हाँ मियाँ ये गाइड लोगाँ बोला तो करते हैं” , “अरे क्या..उस्मान ने झिड़कते हुए अशरफ की बात काट दी, अशरफ भी रात में जागते उल्लू की तरह मुँह बना कर उस्मान को सुनने लगा | “बकवास करते हैं सबके सब, किसी के हाथ नहीं कटे थे, अरे... एक बाल तक बाँका ना हुआ” , अशरफ पूरी तरह ध्यान से सुन रहा था, उस्मान का मुँह ताज की तरफ था और वह ऐसे जता रहा था, मानो वह कोई इतिहासकार हो | “कट जाते, बेशक इन बगीचों के बीच कट जाते, हाथ क्या गले कट जाते, जब शहनशाह हिन्दुस्तान, यमुना नदी के मुहाने पर अपनी नाँव लेकर पहुँचा | देखता ही रह गया, और उसके मुँह से निकला वाह ताज’ , सुभान अल्लाह, माशा अल्लाह |”

एक कहानी कहने वाला और दूसरा कहने सुननेवाला दोनों ही इस बात में मशगूल थे | उस्मान ने बात आगे बढ़ाई, “गरजती हुई आवाज़ में शाहजहाँ ने कहा दौलत से तरबतर कर दिया जाए उनको और उनकी सात पुश्तों को जिन्होंने जन्नत के इस नूर को धरती पर उतारा” | दोनों के सामने जैसे बीता कल, वो इतिहास के पन्ने फिर खुल गए हो | उस्मान ने कहना जारी रखा, “लेकिन एक कीमत चुकानी होगी इस नायब अजूबे के बदले....थोड़ी खामोशी छाई, “और...” , “और... उन सबके हाथ कटवा दिए जाएँ, कि वो दूसरा ताज ना बना सकें |” अशरफ ने इस बात से अलग अपना ही राग अलाप दिया, “भाई, तुम माश्टर बन जाओ ना, अपना चुन्नू भी पास हो जावेगा, बिचारे का इश्टरी अपुन के जैसा बोहोत कमजोर है” , उस्मान ने रोब जताते हुए कहा, “यहाँ लोगों के हाथ कटनेवाले हैं, और तुझे चुन्नू की पड़ी है खुदगर्ज़ आदमी” | “हाँ, भाई, हाँ... माफ़ करना... आगे क्या हुआ... कटपीस हो गया क्या” , अशरफ फिर से कहानी पर लौट आया, उस्मान ने भी कहना जारी रखा | “मेरे बड़े, वालिदों के वालिद, शहनशाह के ख़ासमखास, उस्ताद लाहौरी, उन्होंने ही समझौता करवाया कि आज के बाद ये कलाकार फिर कभी अपने औज़ार नहीं उठाएँगे | और उनकी जान बक्श दी गई |” , “ओह्ह्ह्हह...” , अशरफ ने बड़े अचरज को दर्शाया , “मियाँ तुम तो बाउंसर पे बाउंसर मार रेले हो, ऐसा तो शोएब अख्तर भी नहीं मारता होएँगा, सहवाग को” | उस्मान लवर्स बेंच पर खड़ा हो गया, “उस्ताद लाहौरी ना होते तो वे सारे कलाकार मारे जाते | लेकिन एक बात का वायदा करवाया गया |” , “वो क्या मियाँ ?” , “यही कि कोई इस राज़ को किसी के सामने ना खोला जाए कि इन मीनाकारों को बख्श दिया गयाउस्मान बड़े ही संजीदा अंदाज़ में कहता जा रहा था | इस पर अशरफ ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा , “ये तो पब्लिसिटी इश्टंट रे बावा” , “हाँ, ऐसा ही कुछ समझो” | अशरफ ने फिर से एक सवाल पूछ लिया, “और अगर किसी ने बक दिया तो |” , “तो..उस्मान ने जोर से इस सवाल का उत्तर दिया, “तो उस पर पिघलता हुआ लोहा बरसाया जाएगा, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा |”

अशरफ ने ताली बजाते हुए कहा, “कहानी में दम है मियाँ, शोले से भी ज्यादा हिट होवेंगी |” उस्मान इस प्रशंसा पर हल्के से मुस्कुराने लगा | “वैसे मियाँ, माल तो बोहोत मिला होइंगा, तुम्हारे बड़ेवाले अब्बा को, तो फिर तुम ऐसे गएले टुच्चे क्यूँ हो, तुमको तो मस्त बंगले का मालिक होना चाहिए था |” उस्मान ने अफ़सोस जताते हुए कहा, “क्या बताएँ, अशरफ मियाँ, अँगरेज़ ले गए, हमारा सारा खून पसीना चूस कर, हमारे बाप दादाओं से और हमें खोखला छोड़ गए इस हसीन मकबरे के सहारे |”

तो मियाँ, अब तक ये बाताँ तुम किसी को बोले क्यूँ नहीं” , अशरफ की बात तो सही थी, उस्मान भी चाहता तो यही था कि उसे इस बात का इनाम मिले, इनाम ना सही लेकिन लाहौरीहोने का कुछ नाम तो मिले | “नहीं भाई, सब तुम्हारी तरह शराब में टुन्न थोड़ी होंगे जो मेरी बात पर यकीन कर लेंगे” , उस्मान ने अपनी इच्छाओं को दबाते हुए कहा | दोंनो कुछ देर शांत रहे एक दुसरे को देखते रहे और फिर ताजमहल की ओर ताकने लगे | अशरफ ने बड़ी धीमी आवाज़ में कहा, “मियाँ...” , “ह्म्म्म...उस्मान ने हामी भरी, अशरफ ने अपनी खोपड़ी को मसलते हुए कहा, “मियाँ... जितनी चढ़ी थी सब उतर गई..., बोलो तो बोतल खोलूँ फिर...” | उस्मान ने ना के इशारे से अशरफ को मना कर दिया |

आसमान में एक भी बादल नहीं था | रात भी काफ़ी हो चुकी थी | सारा समां दुधिया रोशनी में नहाया हुआ था | अचानक पीछे की तरफ कुछ गिरने की आवाज़ हुई | दोनों चौंक गए | ऐसा लगा जैसे कोई साया चल के गया हो | पहले कभी दोनों इतनी देर तक यहाँ बैठे नहीं थे और बीच बीच में पीछे की ओर से जैसे कोई चाबुक चलने की आवाज़ आ रही हो | दोनों ही डर के मारे काँपने लगे | उस्मान ने धीमें से कहा, “मैंने भूतों की भी कहानी अपने अब्बा से सुनी है | कहीं वो भी तो सच नहीं |” अशरफ ने उस्मान तरफ देखा, “मियाँ अब बोतल भी ख़तम हो गई है, अपने पास तो भूत से लड़ने की ताकत भी नहीं |” जिस दिशा से चाबुक की आवज़ आ रही थी, अचानक वहाँ से एक तेज़ रोशनी भी आई | “भ्भ्भ्भ.....भागो....उस्मान को वो राज़ वाली बात याद आ गई, “ये शाहजहाँ का भूत है, हमारे हाथ काटने आया है |” , अशरफ भी उस चमकी हुई रोशनी की तरफ़ देखकर डरते हुए बड़बड़ाने लगा, “बादशाह भाई, मैं तो मना किया ये उस्मान मियाँ को लेकिन ये माने नहीं, थोड़ा शराब ज्यादा हो गई इनको |” उस्मान ने इस बात पर ज़ोर से एक झापड़ जड़ दिया अशरफ को , “अरे कमीने, तू ही चिल्ला रहा था बे कब से, बताओ बताओ, और अब मेरा नाम ले रहा है |” अशरफ ने मामला संभालते हुए कहा, “मियाँ मैं तो मांडवली कर रेला था, तुमने तो रसीद कर...” | इतने में फिर एक चाबुक सी आवाज़ उस तेज़ रौशनी के साथ आई | उस्मान वहाँ से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा | अशरफ की लुंगी भी डर के मारे खुल गई थी, वह भी उसे पकड़कर दौड़ पड़ा |

-:-:-:-:-:-:-:-:-:-

-->
दूसरे दिन सुबह आँठ बजे अशरफ अपने बिस्तर से उठकर कमरे से बाहर, जम्हाई लेते हुए आया | अभी भी वो आधी नींद में ही था और अपनी आँखे मसल रहा था | लेकिन जैसे ही उसने नीचे पड़े अखबार की तरफ देखा, वो जोर से चिल्लाने लगा, “उस्मान भाई, उस्मान भाई...और अखबार लेकर उस्मान के घर की तरफ दौड़ पड़ा | उस्मान भी इस चीख पुकार को सुनते हुए बाहर आया | “क्या बात है, क्यूँ शोर मचा रहे हो यार | “अरे तुम्हारी फोटू आई है, देखो पता नहीं किसी ५५ साल के बुड्ढे का भी नाम दिया है, ये सब क्या है ?” पेपर के फ्रंट पेज पर उस्मान की डरे हुए चेहरे वाली फोटो के साथ हेडलाइन छपी थी, “मिल गए ताज के हाथ” | “अरे अशरफ ! कल मैंने तुम्हें.....इतना कहते हुए ही उस्मान रुक गया, और अशरफ भी उसकी तरफ एक सवाल भरा चेहरा लिए खड़ा रह गया |

No comments:

Post a Comment