Ami ka Jal - rahulrahi.com |
वो क्या अलफ़ाज़ बिछाऊँ कि तुम तक,
बात पहुँचे, हर रात पहुँचे, मेरी याद पहुँचे ।
वो कौन सा गीत मैं गाऊँ वो राग,
जो प्रीत खिले, हर रीत से आगे, मीत मिले ।
वो कौन से रंग से भरूँ ज़िन्दगी कि,
चित्र बने हर भाव का, ना हो अभाव कोई, हो स्वभाव ऐसा ।
वो कौन सी पगडण्डी को चुनूँ,
जो ना भटकाए, दिखाए गगन, मिलाए तुझसे ।
वो कौन सा रिश्ता बनाऊँ न पाऊँ,
जहाँ धोखा, हो ख़ुशी, न सोचूँ कि आगे क्या होगा ।
वो कौन सा घर वो है कहाँ पर,
जहाँ हो ठहर, हो ना आवागमन, रुके ये सफर ।
वो कौन सी मंज़िल हो अब में,
मिले पीने को 'अमि' का जल, रुके मेरा दिल ।
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