Again - पुनः - Hindi Poem - Lafzghar

Breaking

BANNER 728X90

Thursday, February 16, 2017

Again - पुनः - Hindi Poem



तो क्या था वो जो फिर से हुआ,

कि मैंने तुम्हें था जो खत लिखा,
तुमने लगाया था सीने से,
और बदले में था कुछ ना कहा,
थे सोच में तुम था सोच में मैं,
कि आगे जाने क्या होगा ?

देखा था तुम्हें मैंने ख़्वाबों में,

जो आधा अधूरा टूट गया,
भविष्य का जैसे कोई आइना,
जिसमे चेहरा अपना रिश्ता,
थी डरी सी तुम लेकिन तुमने,
कसकर पकड़ा था हाथ मेरा ।

शायद उसके आगे का सच,

बिन देखे जाने जानता हूँ,
तुम कौन हो और मैं कौन हूँ,
ब्रम्हा का सच पहचानता हूँ,
अनजानों को मेरी बात अति,
मैं तुम्हारा शिव तुम मेरी सती ।

No comments:

Post a Comment