बताओ ना,
हम जीते क्यूँ हैं,
जो डर है, पता है,
मौत तो आनी है एक दिन ।
बताओ ना,
हम साँस क्यूँ हैं लेते,
जो एक रोज़,
जाने के बाद,
वो मेहमाँ ही रहेगी शायद हमेशा ।
बताओ जो ये हक़ीक़त ही है,
जो है सबको पता तो,
फिर क्यों फैलाया ये,
रंगीन मेला जो एक रोज़,
सूना सा हो जाना है ।
क्यों रोज़ जलाती हो,
चूल्हा और उस पर,
तवा रोज़ भूख पकाकर भी मेरी,
पकता नहीं जलता नहीं ।
क्यों हर सवेरे के साथ हम,
उठते हैं और,
खिड़की पर आती है,
वो चिड़िया इस आस में,
मिल जाएगा,
उसे एक दाना ।
क्यों जब सबकुछ,
भला होना है तो तुम्हे डर है क्यूँ,
तेरे घर वाले, मेरे प्यार को,
अपनाएँगे नहीं,
जिसे पूजता है तेरे घर का भगवान ।
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