mukammal - मुकम्मल - hindi poem - Lafzghar

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Thursday, December 1, 2016

mukammal - मुकम्मल - hindi poem



मुकम्मल कोई नहीं,
यहाँ सिवा खुदा के,
वो तो है तनहा सदा,
जो बिना वफ़ा के ।

ले बटोरे चाहे जितने,
सोने के सिक्के,
मौत पर पर्दा नहीं,
क्या बचे बचा के ।

चैन से सोने ना दे,
वो भी क्या ख्वाहिशें,
बैठे हो ए.सी. में और,
जो नसें तपा दे ।

ऐसे ना दौड़ो कि बस,
घोड़ों सा एक नशा हो,
इतनी हवस भी क्या कि,
खुद इंसान ही दबा दे ।

मैं नहीं कहता कि,
सन्यासी का चोला ओढ़ लो,
ख्वाब ऐसा हो जो तुमको,
नींद से जगा दे ।

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