Likh Kuch Apni - लिख कुछ अपनी - Hindi Poem
निकाल कुछ पल ऐ दिल,
लिख दास्ताँ अपनी,
यादों की स्याही घोल,
फुरसत की कलम अपना |
यादों की स्याही घोल,
फुरसत की कलम अपना |
खोल तिजोरी सपनों की,
रंग बिखेर बचपन के,
रंग बिखेर बचपन के,
उड़ा छटा जवानी की,
खुशियों के अफ़साने बाँध |
खुशियों के अफ़साने बाँध |
दर - दर भटके शहरों में,
कुछ सिक्कें कमाने को,
रूह जलाए और तन भी,
किसके लिए ये दौलत है ?
कुछ सिक्कें कमाने को,
रूह जलाए और तन भी,
किसके लिए ये दौलत है ?
रोगों का पिटारा लेकर,
देह तेरी तड़पती है,
ऊँचा उठने का वो जुनून,
छिन गया सुकून सब |
देह तेरी तड़पती है,
ऊँचा उठने का वो जुनून,
छिन गया सुकून सब |
खुद ही फँसता जाता है,
झूठे हँसता जाता है,
वक्त निकलता जाता है,
हाथ धरे फिर रोता है |
झूठे हँसता जाता है,
वक्त निकलता जाता है,
हाथ धरे फिर रोता है |
इसीलिए तो कहता हूँ,
खुद को जान, दिल में झाँक,
धड़कन में जो कैद पड़ी,
खुद को जान, दिल में झाँक,
धड़कन में जो कैद पड़ी,
लिख दास्ताँ अपनी,
यादों की स्याही घोल,
फुरसत की कलम अपना |
यादों की स्याही घोल,
फुरसत की कलम अपना |
www.rahulrahi.com
बहुत ही अच्छा प्रयास है राहुल जी।
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