मूक - Silence - Hindi Poem
चुप सा बैठ थोड़ी देर , यूँ ही न बवाल कर,
चाहे इल्म-ए-ज़िन्दगी, तो खुद से सवाल कर ।
घिसना क्या ये जिस्म बस, दौलत की खातिर,
खुद की ना मेरी सही, रूह का ख़याल कर ।
बाल ही बनाए जा, आईने में क्या फ़न?,
खुद आईना बन जा तू, ऐसा कुछ बड़ा कमाल कर ।
दुनिया में आए और, चाहत से रहे पर्दा,
गैरत है तेरी ज़िन्दगी, जा खुद को हलाल कर ।
है खून माना लाल वो, पानी न होने दे,
बिखरा के चारो ओर उसको, होली का गुलाल कर |
हर ओर रंग - रोगन है, जिस्म का फरेब,
देख गौर दे ज़रा, और ज़रा मलाल कर |
अय्यारी है मामूली सी, फैली गली कूँचा,
उठना अगर ऊँचा है अपनी रूह को जमाल कर |
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