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Monday, December 19, 2016

mook - मूक - hindi poem - rahulrahi

मूक - Silence - Hindi Poem


चुप सा बैठ थोड़ी देर , यूँ ही न बवाल कर,
चाहे इल्म-ए-ज़िन्दगी, तो खुद से सवाल कर ।

घिसना क्या ये जिस्म बस, दौलत की खातिर,
खुद की ना मेरी सही, रूह का ख़याल कर ।

बाल ही बनाए जा, आईने में क्या फ़न?,
खुद आईना बन जा तू, ऐसा कुछ बड़ा कमाल कर ।

दुनिया में आए और, चाहत से रहे पर्दा,
गैरत है तेरी ज़िन्दगी, जा खुद को हलाल कर ।

है खून माना लाल वो, पानी न होने दे,
बिखरा के चारो ओर उसको, होली का गुलाल कर |

हर ओर रंग - रोगन है, जिस्म का फरेब,
देख गौर दे ज़रा, और ज़रा मलाल कर |

अय्यारी है मामूली सी, फैली गली कूँचा,
उठना अगर ऊँचा है अपनी रूह को जमाल कर |

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