Madhhosh - मधहोश - hindipoem -rahulrahi - Lafzghar

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Wednesday, June 7, 2017

Madhhosh - मधहोश - hindipoem -rahulrahi

madhhosh - hindi poem - rahulrahi.com
अब क्या शिकायत करें हम अपने नवाब से,
खो गया खुद को, टकरा के हसीन शबाब से।

घर के परदों से चेहरा सटाने लग गया,
कहे आए खुशबू गुलाब की, उसके हिजाब से।
हफ़्तों शराब पीकर वो इतना मदहोश हुआ है,
रात निकलने को कहे आफ़्ताब से।

कुछ लगा है सीधा जाकर दिल पर उसके,
पहले तो ना पूछे कभी जख्म कबाब से।

कभी तो लौटेगा वो फिर से शहर में मेरे,
उसके लिये रिफाकत की है मैंने नक़ाब से।

रिफाकत - साझेदारी

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