राम से मिले राम
रावण जला... हाँ रावण जला, लेकिन मरा नहीं । फिर राख से उत्पन्न होगा, जन्म लेगा । साल दर साल और काला होगा, और अधिक अन्धकार के साथ आएगा लेकिन मरेगा नहीं । क्योंकि वह रावण नहीं, अहंकार है और अंहकार आँग से नहीं प्रेम से जाएगा । किसी शस्त्र से नहीं कटेगा, मृदु संवादों की मिठास से पिघलेगा । ऐसा ही प्रेम का प्रयोग अनाम प्रेम पिछले कई वर्षों से करता आ रहा है । पूरे भारत में दशहरा के पर्व पर शस्त्रों व लोह उपकरणों की पूजा की जाती है । प्रभु श्रीराम ने रावण और माँ दुर्गा ने इस दिन महिषासुर का वध किया इसिलए इसे विजयादशमी भी कहते हैं । युद्ध में अच्छाई की बुराई पर जीत का यह प्रतीकात्मक दिन दीपावली के उजाले की शुरुआत भी कहलाता है । लेकिन शस्त्र, युद्ध, राम - रावण इत्यादि तो अब किस्से कहानियों, शास्त्रों की बात हो गई । तो फिर अब किस रावण का दहन बाकी है ?
यह रावण है दूरियों का, अपनों से अपनों के न मिल पाने का | इन्हीं दूरियों को घटाने में, रिश्तों को आपस में मिलाने में हमारी सहायता करती है भारतीय रेल | साथ ही इस देश में सबसे अधिक मात्र में लोह का उपयोग व रख-रखाव भी रेलवे ही करती है | तो हमने भी दशहरा के ही दिन को चुना रेलवे बंधुओं से मिलने का | कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से कोलकाता, आसाम, पूरे देश के मुख्य स्टेशनों पर अनाम प्रेमियों ने वहाँ के कर्मचारी जैसे कि स्टेशन मास्टर, गेंगमेन, ट्रेकमेन, सफाइकर्मचारी इत्यादि सभी लोगों से मुलाकात की | उन्हें एक शुभेच्छा पत्र, एक मिठाई और उनके द्वारा दी जा रही सेवा की एवज में कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद दिया गया | इस कार्यक्रम की अगुवाई अनाम प्रेम परिवार के एक युवा सौरभ नगरे व उनके अन्य युवा साथियों ने की |
मुंबई की मध्य रेल इकाई, पश्चिम रेल के कुछ विभाग तथा देश के विभिन्न स्टेशनों पर लगभग २५ सेकण्ड का एक ध्वनी मुद्रण भी चलाया गया जिसमें अनाम प्रेम रेल कर्मियों के कर्तव्य और निष्ठा की सराहना कर रहा है तथा उन्हें धन्यवाद दे रहा है कि रेल कर्मचारियों की वजह से हमारी यात्राएँ सुलभ होती है | सिर्फ अनाम प्रेम परिवार ही नहीं, बल्कि रायपुर की एक मूकबधिर स्कूल आस्था के विद्यार्थी तथा जम्मू में शहीद कप्तान तुषार महाजन के परिवार का भी समावेश था | अपेक्षा से परे तथा जात-पात व भिन्न भाषाओं के अवरोधों को तोड़ता हुआ यह कार्यक्रम सहज तरीके से रेल बांधवों के हृदय में पहुँचने में सफल रहा | विशाखापटनम, सूरत, अजमेर, जयपुर, रायपुर, गोवाहाटी, जम्मू, दिल्ली इत्यादि देश में हर जगह इन सेवा देनेवालों की आँखों में प्रेमपूर्ण अश्रू और चेहरे पर एक चमक खिल गई थी | कई जगहों पर लोग चौक गए कि कोई हमें धन्यवाद देने भला क्यों आएगा ? आश्चर्य व ख़ुशी के मिश्रित भावों के साथ रेल्वे के इन भाइयों ने भी हमें कई तोहफे दिए, हमारा सम्मान किया और दशहरा के इस पर्व को पूरे भारत के जुड़ने का एक नया रंग मिला | दूरियों का रावण जला और राम का राम से मिलन हुआ |
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