बेहतर थी सुबह, चाँदनी रात यहाँ होती,
सपना हो गई सब बातें, सूनी है रहती,
तेरे गाँव की मिट्टी...
चकाचौंध से दूर, शायद यही सारा क़सूर,
रग - रग में शामिल,
तू ने ना जाना उसको, छोड़ा ना क़ाबिल,
रस्ता देख रही तेरे गाँव की मिट्टी...
अनजाने वतन को कैसे गले लगा लिया,
माँ के आँचल का धागा कैसे तोड़ दिया,
तेरा ही रहेगा, तेरा सच्चा प्यार ज़मीन,
आँखें बिछाए बैठी तेरे गाँव की मिट्टी...
बेच दे चाहे बो दे बीज, सब हक़ एक तरफ़ा,
बिक जाएगी हँसके वो, तू ना यूँ क़तरा,
जब कोई व्यापारी अंधा, सीना दे चीरा,
रह जाएगी सहम की तेरे गाँव की मिट्टी...
अब भी वक़्त है शहर का क्या है, वो है पराया,
काम के बदले पैसा देना, बस उसकी माया,
ख़ून चूस ले पसीने के संग, यह रंग है उसका,
माँ के जैसी ममता दे रे गाँव की मिट्टी,
रस्ता देख रही,तेरे गाँव की मिट्टी,
पुकारे है तुझे,मेरे देश के नौजवान ।

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