अक्सर आपने लोगों को शादी करते – कराते हुए देखा होगा | मैं भी कई बार गया हूँ | आप भी गए होंगे, सभी जाते हैं | लेकिन कभी किसी ने ये क्यूँ नहीं सोचा कि आखिर लोग शादी करते क्यूँ हैं | शादी का मतलब होता क्या है, और सबसे अहम बात, क्या ये ज़रूरी है ?
मेरी उम्र भी अब शादी की हो चली है | और मुझसे ज्यादा मेरे माता पिता उत्सुक हैं इस मामले में, लेकिन पता नहीं क्यूँ मुझे इस बारे में दिलचस्पी ज़रा कम है | कारण भी बहुत सारे हैं, एक जिससे मेरा रिश्ता होगा उसे तो मैं जनता ही नहीं, पता नहीं आगे क्या हो, दूसरा यह कि अक्सर शादी के कुछ महीनों या कहलो कुछ सालो बाद ही शादी के रिश्ते में कुछ खास नहीं बच जाता, शादी के दिन ही लड़का और लड़की हीरो और हिरोइन होते हैं, बाकी कि सारी फिल्म में वो दोनों ही विलेन की भूमिका निभाते हैं, ऐसा मैंने देखा है | बहुत कम शादियाँ ऐसी हैं जो सच में शादी कहलाने के लायक हैं |
आज तक इस बात का पता नहीं चल पाया है कि मानवता इस धरती पर कब से है, क्या हम सच में पौराणिक कथाओं के अनुसार मनु के वंशज हैं या फिर हम आदिमानव की पीढ़ी जो बन्दर के क्रमिक विकास के कारण अस्तित्व में आई है या फिर दोनों ही या फिर किसी एलियन के द्वारा रोपा गया एक बीज | लेकिन इतना तय है कि किसी सभ्य मानव समाज ने ही शादी नाम के इस रिश्ते को जन्म दिया होगा, क्यूंकि जानवरों में शादी नहीं होती | वहाँ सिर्फ जीवनसाथी होता है, और उनके बीच समझदारी होती है |
हमारे समाज के अनुसार एक मर्द तथा एक औरत एक दूसरे की या अपने परिवारों की सहमती या ज़बरदस्ती से पूरे समाज के सामने, अपने धर्म के अनुसार रस्में – कसमें खाकर एक दूसरे के साथ पूरी ज़िंदगी बिताने का फैसला करते हैं उसे शादी कहा जाता है | हिंदू धर्म में सात फेरे होते हैं, क्रिश्चियन लोग चर्च जाते हैं, मुसलमानों में मौलवी के सामने कबूल करवाते हैं इत्यादि... | लेकिन ये शादियाँ तो सिर्फ बाहरी जगत की शादी है और अब धीरे धीरे ये चीज़ें लोगों के लिए शोहरत की बात हो गई है | अब तो जितनी बड़ी शादी उतनी बड़ी इज्ज़त | शादी खेल बन कर रह गई है | खुशियों का बम सिर्फ बारात में ही फूटता है, मुफ्त की दावतें उड़ाई जाती हैं और वो जो रौनक दिखाई देती है, चंद लम्हों में कहाँ खो जाती है कुछ पता ही नहीं चलता |
शादी के बाद दुःख ही दुःख हो, ऐसा हर एक के साथ होता है ज़रूरी नहीं | ज़िन्दगी में उतार चढ़ाव तो आते हैं | जो रिश्ते जीवन की कसौटी पर खरे उतरतें हैं वही असली कहलाते हैं, बाकी सब तो सिर्फ शरीरों के बंधन रह जाते हैं |
मेरे लिए शादी रोशनियों से सजा मंडप नहीं बल्कि समझदारी भरा एक कदम है ज़िंदगी भर के लिए | ये कोई बंधन नहीं बल्कि दो अलग शरीर और मन के बीच का एक महत्वपूर्ण रिश्ता है, जो इस समाज को जिंदा रहने के लिए अगली कड़ी प्रदान करता है | उम्र की विवशता न देखकर इस फैसले को आपसी मेल मिलाप और अनुभवों से तय किया जाना ज़्यादा बेहतर है, ऐसा मुझे लगता है | उदाहरण की बात है, एक मामूली सा मोबाइल अगर किसी को खरीदना हो तो वो दस लोगों से पूछेगा लेकिन शादी जो मेरे हिसाब से समाज का सबसे अहम हिस्सा है, लोग उस पर ध्यान ही नहीं देते | बस औपचारिकता निभा लेते हैं एक लड़के और लड़की को मिलाकर |
ऊपर लिखी सारी बातें यह सिर्फ मेरे विचार और सोच है | इनका सही और गलत होना आपकी सहमती और असहमति पर निर्भर करता है और कुछ नहीं |
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