तुम्हें जीना चाहता हूँ,
दरवाज़े तुम्हारे मन के,
बंद रहते हैं हर सुबह ।
हर दोपहर भी राह तुम्हारी,
देखी है, पेड़ों के तले,
एक रोटी आराम की,
संतोष भरा जल का लोटा,
मैं लेकर के बैठा हूँ,
ना जाने तू कब आएगा ।
लो साँझ फिर से आ गई,
फिर भी फिरता है तू जग में,
जब तक रोशन है आसमान,
तू लौट आ, तू लौट आ,
भटक ना जाए तू रास्ता,
मेरे यार मुझे तेरी चिंता ।
फिर रात अन्धेरे का आँगन,
बस मैं ही हूँ तू लापता,
हर रोज़ का यही है चक्कर,
कब खुलेगा मन का दरवाज़ा ।
उम्मीद से भरा एक पल हूँ,
तुम्हें जीना चाहता हूँ,
दरवाज़े तुम्हारे मन के,
बंद रहते हैं हर सुबह ।
No comments:
Post a Comment