Where are jihadi - मैं जन्नत में हूँ - जिहादी कहाँ है - Hindi Poem - Rahulrahi - Lafzghar

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Tuesday, July 28, 2015

Where are jihadi - मैं जन्नत में हूँ - जिहादी कहाँ है - Hindi Poem - Rahulrahi

Jihadi Kahan hai - hindi poem - rahulrahi.com


देखो खुली वादियाँ,
खो ले है बाँहें खड़ी,
लेकिन लिए आँखे नम,
वो मेरी माँ रो रही... 
क्यों मेरी माँ रो रही ?

मैं जन्नत में हूँ,
कहर हर जगह है,
मैं जन्नत में हूँ,
रहम तू कहाँ है... 

था जगा दिन नया,
सर्दियों के हाथों में,
खुशनुमा था जहाँ,
दोस्तों की बातों में,

स्कूल के लिए थे,
निकले हम,
ख्वाबो की राहें,
चले कदम....

मिलकर बैठे साथ में,
लिखने - पढ़ने की ताक में,
उस खुदा से की दुआ,
और अदा किया शुक्रिया...

मैं जन्नत में हूँ,
मेरी ये सदा है,
हाँ मैं खुश ही हूँ,
तूने जो दिया है.... 

और फिर कहाँ से आए वो अँधेरे,
बरसा गए बारूदी दहशतें,
लहू ही लहू फैला गए हर तरफ,
इंसानियत के खो गए रास्ते...

मैं गिड़गिड़ाता रहा,
बिरादर ना मारो मुझे,
मेरी माँ अकेली है घर,
रहम, जाने दो मुझे.... 

उसने लिया खुदा का नाम,
और कर दिया सब कुछ तमाम,
अंगार बरसा गया,
वहशत भरा वो पयाम... 

मैं जन्नत में हूँ,
उन्हें क्या पता है,
मैं जन्नत में हूँ,
मेरी रूह जवां है...

शायद कह सकूँ,
यहाँ जो समाँ है,
मैं जन्नत में हूँ,
जिहादी कहाँ हैं.... 

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