ज़िंदगी उधार है, बचपन के हाथों में,
बारिश के पानी की, नाँव की यादों में ।
गीले गलियारे में, चौक चौवारे में,
सौंधी सी ख़ुशबू, मिट्टी के गारे में ।
सड़कों पर क्रिकेट के, चौकों और छक्कों में,
कल फिर से मिलने के, यारों के वादों में ।
तूफ़ाँ में उलटी हो जाती वो छतरी में,
भीगे बदन होते चाय की टपरी में ।
छपरों से गिरती, मोटी मोटी धारों में,
उल्लसित बच्चों की चीख़ और पुकारों में ।
खो गए हैं सारे, कामों - व्यापारों में,
पेट्रोल के धुओं में, ए.सी. की कारों में,
अब दिन गुज़रता है, टेन्शन के छातों में,
ज़िंदगी उधार है, बचपन के हाथों में ।
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