Jeevan ki local / जीवन की लोकल - Lafzghar

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Saturday, March 26, 2016

Jeevan ki local / जीवन की लोकल



दो पटरियों पे वो दौड़ें है,
ले जाती है वो राही को,
अनजाने हमराही को,
बेगाने से सिपाही को, जो,

जूझता है, लड़ता रहता है,
मन के लाखों स्टेशन पर,
आती जाती भावों की ट्रेन,
कोई धीमी और कोई तेज़,

वो उसे दिशाएँ देती हैं,
और उसे बहा ले जाती हैं,
बिन पूछे बिना कहे कुछ भी,
बस आती जाती रहती है,

जो ध्यान ना दे राही तो,
जो चूक गया अपना स्टेशन,
तो भटकेगा, पछताएगा,
कब आए जाने वो स्टेशन,

फिर उसे भी आख़िर तक जाना,
और जाकर लौटना फिर होगा,
बस रहे ख़याल, ना आए सवाल,
जो आए क़िस्मत का स्टेशन,

वरना है लगा आना - जाना...
ऐसी है जीवन की लोकल...

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